Sunday, 16 October 2016

वीर



 पैदा हुआ मैं चिराग बन , परिवार का वारिस बना । 
 मेरी किलकारियां सुन  सभी ने,कई सपनो को बुना। 
 
जवां हुआ तो माँ बाप के सहारे की उम्मीद बना ,
उम्मीद तोड़कर उनकी ,मैंने भारत की  सरहद को चुना। 
 
नम्म आँखों से वो भी बोले करनी है रक्षा अब उसकी ,
माँ है वो तेरी ,खेला  है तू गोद में जिसकी। 
 
गोली ,बारूद, बेकसूरों के लहू से जो कराह रही है,
 वो धरती माँ आज अपने जवानों को बुला रही है। 
 
आज मैं सरहद पर खड़ा हूँ ,न जाने ,कब कहाँ  कितने युद्ध में लड़ा हूँ । 
न दूंगा उसका अंश ,  ढाल बन मैं खड़ा हूँ। 
कल भी लड़ा था आज भी अडिग हूँ ,अपनी भारत माँ का मैं वो वर पुत्र हूँ। 
 
सबूत मांगता आब मुल्क है ,मुझसे ,उस वीरता के युद्ध का। 
सुकून ,उसका परिणाम  हैं ,वो जानकार भी अनजान है। 
 
वीरगति मिल जाये ऐसे रक्षा का प्रण लेते हैं,
खुद को समर्पित कर,अपनी इच्छाओ की आहुति हम देते हैं। 
 
न दीवाली, न होली, न कोई त्यौहार है ,खुशहाल भारत ही मेरी माँ का हार है। 
 
बर्फीली हवा,कड़कती धूप का भी ,अब कोई असर न होता हैं मुझमे,
आखिरी सांस तक भी दुश्मनो से यही बोलती है ,आ अगर दम है तुझमे।
 
मैं रातो को भी जागता हूँ , ताकि मेरा भारत सो सके,
मैं बम गोलियों का भी करता सामना हूँ ,ताकि मेरा भारत खुशियों  किलकारियों से गूँज सके। 
 
हर क्षण ,मेरी लहूलुहान वर्दी मुझे गर्व से  यही बोलती है ,
तूने सदैव ही खुद को साबित किया है,धरती माँ भी ख़ुशी से डोलती है। 
 
तू वीर तू जवान है , तू हम सबके लिए मिसाल है। 
तुझसे सबूत मांगने वाला ,मंदबुद्धि इंसान है। 
तूने जीने जितना काबिल रखा ,जानते है सब, फिर भी अनजान है। 
 
तू मरकर भी अमर है ,तू फ़ौजी तू शहीद है। 
तू देश का,  वो पुत्र है , जिसका कुटुंब पूरा देश है। 
 
तू हर अबला का वो भाई है , तू रक्षक तू सिपाही है ,
तू निस्वार्थ है तू साहसी है , तू इस देश का ही एक वासी है। 
 
तू मरते दम तक, भारत माँ की जय दोहराता है ,
तेरे पार्थिव शरीर पर भी ,विजय तिरंगा लहराता है। 
 
तू शौर्य तू पराक्रम है ,तू योद्धां तू विक्रम है। 
 
तूने भारत को सदैव दिया अमन है,
भारत के सभी वीरो को मेरा  शत-शत  नमन है।  
 
 
                                                                                                                                 ज्योत्स्ना 
 
                                                                                                                 







                              


                            

                         

              
 

           



 

Thursday, 15 September 2016

तुझ जैसा कोई नहीं ऐ माँ

तुझे वीरता की मिसाल कहूँ  , या ममता की एक मूरत ,
तुझे अँधेरे मैं जलता एक चिराग कहूँ , या रिश्ता वो सबसे खूबसूरत।

तू किस मिटटी की बनायीं गयी है ,इस बात से मेरा मन  व्याकुल  होता है,
ये सोचती हूँ  कभी , कि क्या दुनिया में कोई और रिश्ता भी इतना खूबसूरत होता है ,

हाँ, आज तू प्रबल है, बलशाली है ,तेरे जीवन में अपार खुशहाली है ,
पर इंतज़ार में बैठी वो बूढी माँ,यही सोचती है।

धन दौलत से कई रिश्तो को खुश कर लेगा तू ,
 पर माँ की ममता का न कोई मोल है, क्योंकि वो तो इस जग में ससबसे अनमोल है।

तेरी एक मुस्कान हे उसका पूरा जहां है, उसका दर्ज़ा तो दुनिया में सबसे ऊपर और महान हैं।

तेरी आहट को भी वो यूँ भाप लेती है, हमें खुशिया देती है भले ही अपना जीवन कष्टो में काट लेती है।
 वो कल भी दो साड़ियों में खुश थी, आज हज़ारो मैं भी उसकी ममता न बदली है।

उसे कल भी तेरी फ़िक्र थी , आज भी तेरे खुश रहने की दुआ वो करती है।

माँ का क़र्ज़ आज तक न कोई चुका  पाया हैं , वो तब भी लाड करती है ,
भले ही, उसके लाडले ने उसका दिल दुखाया है।

कभी भूलके भी ,तू उस माँ को न रुलाना , जब भी बुलाये बस तू उसके पास चले जाना।
उसकी गोद  में सिर  रख कर बस ये पूछ लेना ,माँ तू कैसी  हैं , कही तुझे कोई दुःख तो नहीं ,ये मुझे बताना।

वो भूकी है प्यार की धन दौलत की नहीं ,रो देगी वो इस बात पर चाहे दुःख हो या नहीं।
पोछकर वो आंसू तू उसे गले लगाना।

तुझ जैसा प्यारा और सच्चा कोई नहीं माँ , ये उन्हें बताना।
चाहे तुझे कुछ भी कहे ये ज़माना , तू अपनी  माँ को अपने साथ हे ले जाना।


                                                                                                                               ज्योत्स्ना सुयाल



 

जब अनजान थे.......

जब अनजान  थे तब ही खुश थे , जब जान लिया तो वजह ढूंढने पर मज़बूर हो गए। 

जब न था पता की खुश होने की कोई वजह भी होती है ,

                                                           जब जान गए तो अब  हर ख़ुशी की वजह ही होती है। 

वो बचपन ही शायद अच्छा था , वो किताबो और पढाई का बोझ ही  अच्छा था,
                                           आज वजह ढूंढकर लोग अपनाते है ,तब तो अपना हर दोस्त सच्चा था।  

तब तो रोते  रोते भी हँस देते थे ,आज तो गीली आँखों में  ही सो जाते है ,
                                           तब कभी बड़े अरमाँ नही होते थे ,आज अपनी ज़िन्दगी में ही सब खो जाते है।  

तब अपनी छोटी सी दुनिया में ही  खुश रहते थे , कभी चोट या ठोकर भी खाते तो हँस  देते थे ,
            
आज खुद को तलाशते है, इतने बड़े जहां में, ठोकरे खाते है तब भी किसी का सहारा आता है न ध्यान में।  

तब माँ बाप के साये मैं महफूज़ थे ,तब लाड प्यार डाठ को ही , ज़िन्दगी समझते थे ,
                                           आज ज़िन्दगी में अकेले है खड़े ,तो सोचते है वो दिन कितने अच्छे थे। 

जब जानते न थे तो हम भी बहुत सच्चे थे। 
                                              जब न था पता तब हम बच्चे थे। 
  
जब जानते न थे तो ख़ुशी दिल से होती थी ,आज बस दिखावा है 
                                                दिलो में दर्द ,और चेहरे में  एक ख़ुशी का छलावा है। 


Monday, 1 August 2016

खेल की विराट ऱढ़भूमि



अब वक़्त है वो आ चला , जब तिरंगा विश्व में लहराएगा। 

अपने अनोखे तेज से ,वो हर क्षढ  जगमगायेगा। 

स्वर्ण पदक नयोछारता वो  वीर अब दोहराएगा , भारत माता की जय , 

 नारा अब हर कोई  लगाएगा। 

वो डट गए है मैदान पर ,अब वीरता के दाव पर। 

अब  जीत की ललकार है ,  वो जीत कर ही आएगा। 

कोई स्वर्ण ,कोई चाँदी, कोई कास्य  पदक  लाएगा। 

पर हौसला  फिर आने का न उनका डगमगाएगा। 

भारत की  शान बनकर तू  विश्व में अब जायेगा ,

 वो मैदान नहीं रढ़ भूमि है ,तू वीर अब कहलायेगा। 

किसी के घर की बेटी अब भारत की बेटी कहलाएगी ,

कभी साड़ियों  को लहराती घर में , अब तिरंगा  विश्व में फहराएगी। 

कल गुड़ियों से खेलने वाली ,अब विख्यात ऱढ़भूमि में खेल जाएगी। 

सोने ,चाँदी  के पदक से ,भारत माँ को अब सजायेगी।

शान से जब अपनी जन्म भूमि में वो लौट आएंगे ,

सभी देशवासी मिलकर उन्हें गर्व का तिलक लगाएंगे। 

भारत माता की जय भारत माता की जय हम सब साथ नारा ये लगाएंगे,

हर एक  वीर की वीरता की गाथाये हम दोहराएंगे। 



                                                                                                                                   : ज्योत्स्ना सुयाल













Thursday, 23 June 2016

छोड़ चली माँ आज तेरा अंगना

                 मैं छोड़ चली माँ आज तेरा अंगना ,बस ले जा रही हूँ अपनी मीठी सी यादो का सपना।

                 क्यों आँख भर आई है आज मेरे जाने पर , जब जानते है सब यही दस्तूर है सामज का।

             क्यों लग रहा है मैं हो रही हूँ  पराई , जब जानती हु की रिश्ता है मेरा तुझसे अटूट प्यार का।

   क्यों तेरे आँगन पर गिर रही हु ये अनाज के दाने,ये भी पता है न चूका पाऊँगी वो क़र्ज़ तेरे दुलार का।

अब वक़्त के पहियों को कुछ पलो में दोहरा  रही हूँ ,तेरी ममता की लोरी को भीड़ मैं भी गुनगुना रही हूँ।

                            तेरी वो डाठ पर आज बहुत प्यार आ रहा है , तुझसे जुड़ा लम्हा  पुकार रहा है।

                        आज पता चल रहा है कि , तू सिर्फ ममता की मूरत हे नहीं तू कितनी बलवान भी है ।

                                       कभी प्यार को न्योछारती  तो अपने अंश का तूने किया दान भी है।

                                 तेरी इस हँसी  के पीछे के दर्द को आज बहुत अच्छे से समझ रही हूँ ।

                                      माँ के भगवान् से ऊँचे होने का मतलब खुली आँखों से देख रही ।

                                                तू खुश है मेरी ख़ुशी मैं पर कही उदास भी ,

                                                        तू दूर है भीड़ मैं पर मेरे पास भी ।

                                     तू है इस दुनिया की पर क्यों लगती एक रचना महान है,

                                                      तेरा ह्रदय तो समुद्र से भी विशाल है ।

                           आज मुझे तू किसी और को सौंप रही है ,जैसे अपने कलेजे का टुकड़ा दे रही है ।

                               न कभी तुझसे प्यार कोई कर पाएगा मुझे , ये निस्वार्थ प्रेम सदा याद आएगा ।

                तेरी दी हुई सीख से किसी और का घर अब सजाऊंगी ,न कभी तेरे मान को ठेस पहचाउंगी।

                                                       माँ बस एक बिनती करती हु तुझसे ,

भले ही किसी ख़ुशी में तू मुझे अंजान रखना ,पर अपने हर दर्द और दुःख में अपनी इस बेटी को याद रखना ।

                                                                                                                      ज्योत्स्ना सुयाल






पेशावर हमले पर आधारित कविता

हर रोज़ की  तरह घर से निकले थे एक नयी उमंग लिए ,अंजान थे की आने वाला वक़्त क्या जुर्म ढायेगा !

                          माँ का दुलार लिए, पापा की उंगलिया पकड़, चल दिए वो नन्हे कदम !

                                         दरिंदो से अंजान खुशनुमा थे जो हर कदम।

                   एक मंज़र ने पूरी ज़िन्दगी का रुख मोढ दिया , हस्त बस्ते हर एक घर तोड़ दिया !

                             जिस आँगन मैं किलकारियाँ गूंजती थी , अब दर्द की कराह गूंजने लगी ।

                                         लहूलुहान हो गयी दीवारे , साँसे भी नम होने लगी ।

                      हर एक जुबां बस एक शब्द पुकारती रही , माँ मुझे बचा ले, मैं अब शैतानी नहीं करूँगा

                                                   जिस राह तू कहेगी उस राह ही चलुंगा ।

                                      वो लोरियों से भरा घर,अब मातम के सन्नाटे से भर गया,

                       माँ हर किसी से बोलती जा रही , कि मेरा बच्चा आज मुझे अलविदा कह गया ।

जाना सबको है, पर ये दर्दनाक मौत क्यों मिली उन्हें ? आतंकवाद गोली हमला का बिलकुल भी पता न था जिन्हे ।

जहां कभी अरमान सजते थे ,आज अर्थिया सजने लगी , चारो तरफ हर किसी की करआह गूंजने लगी ।

                                                        जाते-जाते हर बच्चा अपनी माँ को कह गया !

माँ ,मैं लाडला था तेरा ,पर उन दरिंदो का नहीं , जीना पड़ेगा तुझे, पर कभी डरकर नहीं ।

                                         डटकर सामना करना, कभी हारना नहीं , मुझे याद करके कभी आंसूं बहाना नहीं ।

मौका मिला तो फिर जनम लूँगा ऐ माँ , और करूँगा आतंकवाद और हमले का नाश ।

                                                                  जो जुर्म धा रहे है धरती पर और कर रहे है मानवता का विनाश।

एक न एक दिन इनके पाप का घड़ा भी फूट जायेगा ,

                                                                    और पेशावर का हर कोन फिर किलकारियों से  गूँज जायेगा ।

                                                                                                                               :ज्योत्स्ना सुयाल





Tuesday, 21 June 2016

पथ

                                                 पथ कठोर है ,पथ का अनन्त कोई छोर  है !

                                              ना हार कर तू बैठ जा , ले प्रतिज्ञा अब हो खड़ा ।
                     
                                            विश्वास होगा जब अटल ,मुश्किलें भी तब जाएँगी टल ।
                                         
                                              तू  ठोकरे भी खायेगा ,खुद को अकेला भी पाएगा ।

                                            पर मत हारना न छोड़ना ,वो प्रतिज्ञा तेरी मत तोड़ना ।

                                             तू कर गुज़र जायेगा जब,हर प्रयत्न याद आएगा तब ।

                                              मत भूलना,अस्तित्व को, निखारना व्यक्तित्व को ।

                                              अभिमान करता है पतन सदियों से दोहराता है ।

                                                न डगमगाना अंत तक ,जायेगा तू अनन्त तक ।

                                                बस ठान ले कर हौसला प्रण है मेरा प्रण है मेरा ........


                                                                                                                                  ज्योत्स्ना सुयाल