हर रोज़ की तरह घर से निकले थे एक नयी उमंग लिए ,अंजान थे की आने वाला वक़्त क्या जुर्म ढायेगा !
माँ का दुलार लिए, पापा की उंगलिया पकड़, चल दिए वो नन्हे कदम !
दरिंदो से अंजान खुशनुमा थे जो हर कदम।
एक मंज़र ने पूरी ज़िन्दगी का रुख मोढ दिया , हस्त बस्ते हर एक घर तोड़ दिया !
जिस आँगन मैं किलकारियाँ गूंजती थी , अब दर्द की कराह गूंजने लगी ।
लहूलुहान हो गयी दीवारे , साँसे भी नम होने लगी ।
हर एक जुबां बस एक शब्द पुकारती रही , माँ मुझे बचा ले, मैं अब शैतानी नहीं करूँगा
जिस राह तू कहेगी उस राह ही चलुंगा ।
वो लोरियों से भरा घर,अब मातम के सन्नाटे से भर गया,
माँ हर किसी से बोलती जा रही , कि मेरा बच्चा आज मुझे अलविदा कह गया ।
जाना सबको है, पर ये दर्दनाक मौत क्यों मिली उन्हें ? आतंकवाद गोली हमला का बिलकुल भी पता न था जिन्हे ।
जहां कभी अरमान सजते थे ,आज अर्थिया सजने लगी , चारो तरफ हर किसी की करआह गूंजने लगी ।
जाते-जाते हर बच्चा अपनी माँ को कह गया !
माँ ,मैं लाडला था तेरा ,पर उन दरिंदो का नहीं , जीना पड़ेगा तुझे, पर कभी डरकर नहीं ।
डटकर सामना करना, कभी हारना नहीं , मुझे याद करके कभी आंसूं बहाना नहीं ।
मौका मिला तो फिर जनम लूँगा ऐ माँ , और करूँगा आतंकवाद और हमले का नाश ।
जो जुर्म धा रहे है धरती पर और कर रहे है मानवता का विनाश।
एक न एक दिन इनके पाप का घड़ा भी फूट जायेगा ,
और पेशावर का हर कोन फिर किलकारियों से गूँज जायेगा ।
:ज्योत्स्ना सुयाल
माँ का दुलार लिए, पापा की उंगलिया पकड़, चल दिए वो नन्हे कदम !
दरिंदो से अंजान खुशनुमा थे जो हर कदम।
एक मंज़र ने पूरी ज़िन्दगी का रुख मोढ दिया , हस्त बस्ते हर एक घर तोड़ दिया !
जिस आँगन मैं किलकारियाँ गूंजती थी , अब दर्द की कराह गूंजने लगी ।
लहूलुहान हो गयी दीवारे , साँसे भी नम होने लगी ।
हर एक जुबां बस एक शब्द पुकारती रही , माँ मुझे बचा ले, मैं अब शैतानी नहीं करूँगा
जिस राह तू कहेगी उस राह ही चलुंगा ।
वो लोरियों से भरा घर,अब मातम के सन्नाटे से भर गया,
माँ हर किसी से बोलती जा रही , कि मेरा बच्चा आज मुझे अलविदा कह गया ।
जाना सबको है, पर ये दर्दनाक मौत क्यों मिली उन्हें ? आतंकवाद गोली हमला का बिलकुल भी पता न था जिन्हे ।
जहां कभी अरमान सजते थे ,आज अर्थिया सजने लगी , चारो तरफ हर किसी की करआह गूंजने लगी ।
जाते-जाते हर बच्चा अपनी माँ को कह गया !
माँ ,मैं लाडला था तेरा ,पर उन दरिंदो का नहीं , जीना पड़ेगा तुझे, पर कभी डरकर नहीं ।
डटकर सामना करना, कभी हारना नहीं , मुझे याद करके कभी आंसूं बहाना नहीं ।
मौका मिला तो फिर जनम लूँगा ऐ माँ , और करूँगा आतंकवाद और हमले का नाश ।
जो जुर्म धा रहे है धरती पर और कर रहे है मानवता का विनाश।
एक न एक दिन इनके पाप का घड़ा भी फूट जायेगा ,
और पेशावर का हर कोन फिर किलकारियों से गूँज जायेगा ।
:ज्योत्स्ना सुयाल
No comments:
Post a Comment