Thursday, 19 May 2022

बचपन

 बचपन

कैसा था वो बचपन  जिसमे हम गिरते , पड़ते और खुद ही रोती आँखें मलते संभल जाते थे ।


हाँ उसी बचपन की बात कर रही हूँ , जब मिट्टी के घर बनाकर उसे कई तरह से सजाते थे , याद है  ना ?


हाँ वही , जिसमे किसी की भी डाट से दिल उदास नहीं  होता था , जब हर बच्चा माँ के आँचल मैं  सिर रखकर सोता था। 


जब खिलखिलाहट घर के हर कोने को रोशन करती थी , जब खुद के घर में अपनी आवाज़ कभी नहीं गूंजती  थी। 


वही बचपन जिसमे नानी दादी के कई किस्से , और किसी भी चीज़ को खाने में उसके बराबर हिस्से होते थे।
हम्म हम्म वही प्यारा बचपन। 


जब अपनों को अपनेपन का एहसास नहीं दिलाना  पड़ता था ,जब दूरियां दिलो की नहीं ,बस मीलों की होती थी। 


आज भी जब याद करती हूँ उन दिनों को तो दिल ख़ुशी से झूम उठता है,

 
वो वक़्त  मानो ज़ैसे कुछ  यादों में सिमट सा  गया है , लेके जैसे मेरा  सारा जहां लिपट सा गया है।

 
वक़्त  लौट नहीं सकता ये सब जानते है ,हम कितना भी कोशिश करें पर यादो से कहाँ निकल पाते है। 


आज उनमें से कुछ यादो को शब्दों में लिख रही हूँ , ऐसा लग रहा है मानो
जैसे बचपन में , मैं लौट रही हूँ ।

                                                                      
 
                                                                                                ज्योत्स्ना

Thursday, 4 May 2017

मोह का जाल

                             मोह का जाल तुझे उलझता चला है ,
                                                                    
                                                                    तू भूलता सदैव अंत में सब राख में मिला है। 

                           बढ़ता रहा मोह, मन माया रुपी मोह से भरा है,

                                                                   जबकि नश्वर वस्तुए तो क्या , ये शरीर भी न तेरा है। 

                           कभी ईर्ष्या, कभी  द्वेष ,कभी अहंकार से तू भरा है ,

                                                                    मत भूल की अंत में तू अपने कर्मो से ही तरा है। 

                           कागज़ के चाँद टुकड़ो को , तू प्रेम उल्लास  समझता है , 

                                                                   वंचित है जो उससे , उसे न खास समझता है। 

                            कभी अहंकार, तो कभी मन को स्वार्थ से भरता है,

                                                                   पर जानले , कि ऊपर वाला भी तुझे तेरे कर्मो से तोलता है। 

                           लेता है बेर, तो कभी  मन में, रंजिशे रखता हैं , 


                                                                    न मानता है कि माफ़ करने वाला हे बड़ा होता है। 

                          जब अंत तेरा आएगा कुछ भी न रह जायेगा ,


                                                                     तेरा स्वाभाव ही तेरे अपनों के बीच एक छाप छोड़  जायेगा। 

                           न कागज़ के टुकड़े , न अपार संपत्ति तू अपने संग ले जायेगा, 


                                                                     वहा तो तू, खाली  हाथ और पैदल ही जयेगा। 

                           ये व्यर्थ का अहंकार और लालच छोड़ दे ,

                                                                     ये न कभी तेरे काम आएगा।

                           बस निस्वार्थ प्रेम बाँटता चला जा , 

                                                                      तू सब के दिलो में ,घर कर जायेगा। 

   
                                                                                                                                ज्योत्स्ना सुयाल 

चिरैया

ये वही  नन्ही सी गुड़िया है,  जिसने हमेशा खुशिया  ही बाटी है ,

ये वही चिरैया है , जो कभी अपना घर तो कभी अपनों को छोड़कर आयी है। 

ये तो वो कली है , जो कभी खिलने से पहले हे तोड़  जाती है,

ये तो इतनी भली है , की जो जानकार भी हर दर्द सह जाती है। 

कहते तो है, कि  इसके होने से ही घर में लक्ष्मी आती है ,

फिर भी ये, दुनिया में आने से पहले ही गर्भ में मार दी जाती है। 

जन्म ले भी ले, तो दुनिया इसे  बड़ा सताती है ,

 इसके तो कपड़ो से भी इसके चरित्र की तुलना की जाती है। 

ये तो वो रौशनी है, जो अंधेरो को उजालो से भर देती है ,

फिर भी ,कभी प्रताड़ित, तो कभी आग में झोक दी जाती हैं। 

ये तो वो है ,जो आज चाँद तक भी जाती है , तो ये वो भी है, जो घर आँगन सजाती है। 

कभी गौरव पूर्ण कहानी तो कभी  मिसाल बन् जाती है,   

पराक्रमी है ,ये तो  तूफानों से भी लड़ जाती है।  

इसका अपमान करने वाला सदैव आग में हे जला है ,

ये कभी दुर्गा तो कभी काली बन जाती है। 

भूल के भी, कभी इसका निरादर न करो ,

क्योंकि ये वही है, जो हमें ये सुंदर संसार दिखती है। 






Sunday, 16 October 2016

वीर



 पैदा हुआ मैं चिराग बन , परिवार का वारिस बना । 
 मेरी किलकारियां सुन  सभी ने,कई सपनो को बुना। 
 
जवां हुआ तो माँ बाप के सहारे की उम्मीद बना ,
उम्मीद तोड़कर उनकी ,मैंने भारत की  सरहद को चुना। 
 
नम्म आँखों से वो भी बोले करनी है रक्षा अब उसकी ,
माँ है वो तेरी ,खेला  है तू गोद में जिसकी। 
 
गोली ,बारूद, बेकसूरों के लहू से जो कराह रही है,
 वो धरती माँ आज अपने जवानों को बुला रही है। 
 
आज मैं सरहद पर खड़ा हूँ ,न जाने ,कब कहाँ  कितने युद्ध में लड़ा हूँ । 
न दूंगा उसका अंश ,  ढाल बन मैं खड़ा हूँ। 
कल भी लड़ा था आज भी अडिग हूँ ,अपनी भारत माँ का मैं वो वर पुत्र हूँ। 
 
सबूत मांगता आब मुल्क है ,मुझसे ,उस वीरता के युद्ध का। 
सुकून ,उसका परिणाम  हैं ,वो जानकार भी अनजान है। 
 
वीरगति मिल जाये ऐसे रक्षा का प्रण लेते हैं,
खुद को समर्पित कर,अपनी इच्छाओ की आहुति हम देते हैं। 
 
न दीवाली, न होली, न कोई त्यौहार है ,खुशहाल भारत ही मेरी माँ का हार है। 
 
बर्फीली हवा,कड़कती धूप का भी ,अब कोई असर न होता हैं मुझमे,
आखिरी सांस तक भी दुश्मनो से यही बोलती है ,आ अगर दम है तुझमे।
 
मैं रातो को भी जागता हूँ , ताकि मेरा भारत सो सके,
मैं बम गोलियों का भी करता सामना हूँ ,ताकि मेरा भारत खुशियों  किलकारियों से गूँज सके। 
 
हर क्षण ,मेरी लहूलुहान वर्दी मुझे गर्व से  यही बोलती है ,
तूने सदैव ही खुद को साबित किया है,धरती माँ भी ख़ुशी से डोलती है। 
 
तू वीर तू जवान है , तू हम सबके लिए मिसाल है। 
तुझसे सबूत मांगने वाला ,मंदबुद्धि इंसान है। 
तूने जीने जितना काबिल रखा ,जानते है सब, फिर भी अनजान है। 
 
तू मरकर भी अमर है ,तू फ़ौजी तू शहीद है। 
तू देश का,  वो पुत्र है , जिसका कुटुंब पूरा देश है। 
 
तू हर अबला का वो भाई है , तू रक्षक तू सिपाही है ,
तू निस्वार्थ है तू साहसी है , तू इस देश का ही एक वासी है। 
 
तू मरते दम तक, भारत माँ की जय दोहराता है ,
तेरे पार्थिव शरीर पर भी ,विजय तिरंगा लहराता है। 
 
तू शौर्य तू पराक्रम है ,तू योद्धां तू विक्रम है। 
 
तूने भारत को सदैव दिया अमन है,
भारत के सभी वीरो को मेरा  शत-शत  नमन है।  
 
 
                                                                                                                                 ज्योत्स्ना 
 
                                                                                                                 







                              


                            

                         

              
 

           



 

Thursday, 15 September 2016

तुझ जैसा कोई नहीं ऐ माँ

तुझे वीरता की मिसाल कहूँ  , या ममता की एक मूरत ,
तुझे अँधेरे मैं जलता एक चिराग कहूँ , या रिश्ता वो सबसे खूबसूरत।

तू किस मिटटी की बनायीं गयी है ,इस बात से मेरा मन  व्याकुल  होता है,
ये सोचती हूँ  कभी , कि क्या दुनिया में कोई और रिश्ता भी इतना खूबसूरत होता है ,

हाँ, आज तू प्रबल है, बलशाली है ,तेरे जीवन में अपार खुशहाली है ,
पर इंतज़ार में बैठी वो बूढी माँ,यही सोचती है।

धन दौलत से कई रिश्तो को खुश कर लेगा तू ,
 पर माँ की ममता का न कोई मोल है, क्योंकि वो तो इस जग में ससबसे अनमोल है।

तेरी एक मुस्कान हे उसका पूरा जहां है, उसका दर्ज़ा तो दुनिया में सबसे ऊपर और महान हैं।

तेरी आहट को भी वो यूँ भाप लेती है, हमें खुशिया देती है भले ही अपना जीवन कष्टो में काट लेती है।
 वो कल भी दो साड़ियों में खुश थी, आज हज़ारो मैं भी उसकी ममता न बदली है।

उसे कल भी तेरी फ़िक्र थी , आज भी तेरे खुश रहने की दुआ वो करती है।

माँ का क़र्ज़ आज तक न कोई चुका  पाया हैं , वो तब भी लाड करती है ,
भले ही, उसके लाडले ने उसका दिल दुखाया है।

कभी भूलके भी ,तू उस माँ को न रुलाना , जब भी बुलाये बस तू उसके पास चले जाना।
उसकी गोद  में सिर  रख कर बस ये पूछ लेना ,माँ तू कैसी  हैं , कही तुझे कोई दुःख तो नहीं ,ये मुझे बताना।

वो भूकी है प्यार की धन दौलत की नहीं ,रो देगी वो इस बात पर चाहे दुःख हो या नहीं।
पोछकर वो आंसू तू उसे गले लगाना।

तुझ जैसा प्यारा और सच्चा कोई नहीं माँ , ये उन्हें बताना।
चाहे तुझे कुछ भी कहे ये ज़माना , तू अपनी  माँ को अपने साथ हे ले जाना।


                                                                                                                               ज्योत्स्ना सुयाल



 

जब अनजान थे.......

जब अनजान  थे तब ही खुश थे , जब जान लिया तो वजह ढूंढने पर मज़बूर हो गए। 

जब न था पता की खुश होने की कोई वजह भी होती है ,

                                                           जब जान गए तो अब  हर ख़ुशी की वजह ही होती है। 

वो बचपन ही शायद अच्छा था , वो किताबो और पढाई का बोझ ही  अच्छा था,
                                           आज वजह ढूंढकर लोग अपनाते है ,तब तो अपना हर दोस्त सच्चा था।  

तब तो रोते  रोते भी हँस देते थे ,आज तो गीली आँखों में  ही सो जाते है ,
                                           तब कभी बड़े अरमाँ नही होते थे ,आज अपनी ज़िन्दगी में ही सब खो जाते है।  

तब अपनी छोटी सी दुनिया में ही  खुश रहते थे , कभी चोट या ठोकर भी खाते तो हँस  देते थे ,
            
आज खुद को तलाशते है, इतने बड़े जहां में, ठोकरे खाते है तब भी किसी का सहारा आता है न ध्यान में।  

तब माँ बाप के साये मैं महफूज़ थे ,तब लाड प्यार डाठ को ही , ज़िन्दगी समझते थे ,
                                           आज ज़िन्दगी में अकेले है खड़े ,तो सोचते है वो दिन कितने अच्छे थे। 

जब जानते न थे तो हम भी बहुत सच्चे थे। 
                                              जब न था पता तब हम बच्चे थे। 
  
जब जानते न थे तो ख़ुशी दिल से होती थी ,आज बस दिखावा है 
                                                दिलो में दर्द ,और चेहरे में  एक ख़ुशी का छलावा है। 


Monday, 1 August 2016

खेल की विराट ऱढ़भूमि



अब वक़्त है वो आ चला , जब तिरंगा विश्व में लहराएगा। 

अपने अनोखे तेज से ,वो हर क्षढ  जगमगायेगा। 

स्वर्ण पदक नयोछारता वो  वीर अब दोहराएगा , भारत माता की जय , 

 नारा अब हर कोई  लगाएगा। 

वो डट गए है मैदान पर ,अब वीरता के दाव पर। 

अब  जीत की ललकार है ,  वो जीत कर ही आएगा। 

कोई स्वर्ण ,कोई चाँदी, कोई कास्य  पदक  लाएगा। 

पर हौसला  फिर आने का न उनका डगमगाएगा। 

भारत की  शान बनकर तू  विश्व में अब जायेगा ,

 वो मैदान नहीं रढ़ भूमि है ,तू वीर अब कहलायेगा। 

किसी के घर की बेटी अब भारत की बेटी कहलाएगी ,

कभी साड़ियों  को लहराती घर में , अब तिरंगा  विश्व में फहराएगी। 

कल गुड़ियों से खेलने वाली ,अब विख्यात ऱढ़भूमि में खेल जाएगी। 

सोने ,चाँदी  के पदक से ,भारत माँ को अब सजायेगी।

शान से जब अपनी जन्म भूमि में वो लौट आएंगे ,

सभी देशवासी मिलकर उन्हें गर्व का तिलक लगाएंगे। 

भारत माता की जय भारत माता की जय हम सब साथ नारा ये लगाएंगे,

हर एक  वीर की वीरता की गाथाये हम दोहराएंगे। 



                                                                                                                                   : ज्योत्स्ना सुयाल