मैं छोड़ चली माँ आज तेरा अंगना ,बस ले जा रही हूँ अपनी मीठी सी यादो का सपना।
क्यों आँख भर आई है आज मेरे जाने पर , जब जानते है सब यही दस्तूर है सामज का।
क्यों लग रहा है मैं हो रही हूँ पराई , जब जानती हु की रिश्ता है मेरा तुझसे अटूट प्यार का।
क्यों तेरे आँगन पर गिर रही हु ये अनाज के दाने,ये भी पता है न चूका पाऊँगी वो क़र्ज़ तेरे दुलार का।
अब वक़्त के पहियों को कुछ पलो में दोहरा रही हूँ ,तेरी ममता की लोरी को भीड़ मैं भी गुनगुना रही हूँ।
तेरी वो डाठ पर आज बहुत प्यार आ रहा है , तुझसे जुड़ा लम्हा पुकार रहा है।
आज पता चल रहा है कि , तू सिर्फ ममता की मूरत हे नहीं तू कितनी बलवान भी है ।
कभी प्यार को न्योछारती तो अपने अंश का तूने किया दान भी है।
तेरी इस हँसी के पीछे के दर्द को आज बहुत अच्छे से समझ रही हूँ ।
माँ के भगवान् से ऊँचे होने का मतलब खुली आँखों से देख रही ।
तू खुश है मेरी ख़ुशी मैं पर कही उदास भी ,
तू दूर है भीड़ मैं पर मेरे पास भी ।
तू है इस दुनिया की पर क्यों लगती एक रचना महान है,
तेरा ह्रदय तो समुद्र से भी विशाल है ।
आज मुझे तू किसी और को सौंप रही है ,जैसे अपने कलेजे का टुकड़ा दे रही है ।
न कभी तुझसे प्यार कोई कर पाएगा मुझे , ये निस्वार्थ प्रेम सदा याद आएगा ।
तेरी दी हुई सीख से किसी और का घर अब सजाऊंगी ,न कभी तेरे मान को ठेस पहचाउंगी।
माँ बस एक बिनती करती हु तुझसे ,
भले ही किसी ख़ुशी में तू मुझे अंजान रखना ,पर अपने हर दर्द और दुःख में अपनी इस बेटी को याद रखना ।
ज्योत्स्ना सुयाल
क्यों आँख भर आई है आज मेरे जाने पर , जब जानते है सब यही दस्तूर है सामज का।
क्यों लग रहा है मैं हो रही हूँ पराई , जब जानती हु की रिश्ता है मेरा तुझसे अटूट प्यार का।
क्यों तेरे आँगन पर गिर रही हु ये अनाज के दाने,ये भी पता है न चूका पाऊँगी वो क़र्ज़ तेरे दुलार का।
अब वक़्त के पहियों को कुछ पलो में दोहरा रही हूँ ,तेरी ममता की लोरी को भीड़ मैं भी गुनगुना रही हूँ।
तेरी वो डाठ पर आज बहुत प्यार आ रहा है , तुझसे जुड़ा लम्हा पुकार रहा है।
आज पता चल रहा है कि , तू सिर्फ ममता की मूरत हे नहीं तू कितनी बलवान भी है ।
कभी प्यार को न्योछारती तो अपने अंश का तूने किया दान भी है।
तेरी इस हँसी के पीछे के दर्द को आज बहुत अच्छे से समझ रही हूँ ।
माँ के भगवान् से ऊँचे होने का मतलब खुली आँखों से देख रही ।
तू खुश है मेरी ख़ुशी मैं पर कही उदास भी ,
तू दूर है भीड़ मैं पर मेरे पास भी ।
तू है इस दुनिया की पर क्यों लगती एक रचना महान है,
तेरा ह्रदय तो समुद्र से भी विशाल है ।
आज मुझे तू किसी और को सौंप रही है ,जैसे अपने कलेजे का टुकड़ा दे रही है ।
न कभी तुझसे प्यार कोई कर पाएगा मुझे , ये निस्वार्थ प्रेम सदा याद आएगा ।
तेरी दी हुई सीख से किसी और का घर अब सजाऊंगी ,न कभी तेरे मान को ठेस पहचाउंगी।
माँ बस एक बिनती करती हु तुझसे ,
भले ही किसी ख़ुशी में तू मुझे अंजान रखना ,पर अपने हर दर्द और दुःख में अपनी इस बेटी को याद रखना ।
ज्योत्स्ना सुयाल