Thursday, 15 September 2016

तुझ जैसा कोई नहीं ऐ माँ

तुझे वीरता की मिसाल कहूँ  , या ममता की एक मूरत ,
तुझे अँधेरे मैं जलता एक चिराग कहूँ , या रिश्ता वो सबसे खूबसूरत।

तू किस मिटटी की बनायीं गयी है ,इस बात से मेरा मन  व्याकुल  होता है,
ये सोचती हूँ  कभी , कि क्या दुनिया में कोई और रिश्ता भी इतना खूबसूरत होता है ,

हाँ, आज तू प्रबल है, बलशाली है ,तेरे जीवन में अपार खुशहाली है ,
पर इंतज़ार में बैठी वो बूढी माँ,यही सोचती है।

धन दौलत से कई रिश्तो को खुश कर लेगा तू ,
 पर माँ की ममता का न कोई मोल है, क्योंकि वो तो इस जग में ससबसे अनमोल है।

तेरी एक मुस्कान हे उसका पूरा जहां है, उसका दर्ज़ा तो दुनिया में सबसे ऊपर और महान हैं।

तेरी आहट को भी वो यूँ भाप लेती है, हमें खुशिया देती है भले ही अपना जीवन कष्टो में काट लेती है।
 वो कल भी दो साड़ियों में खुश थी, आज हज़ारो मैं भी उसकी ममता न बदली है।

उसे कल भी तेरी फ़िक्र थी , आज भी तेरे खुश रहने की दुआ वो करती है।

माँ का क़र्ज़ आज तक न कोई चुका  पाया हैं , वो तब भी लाड करती है ,
भले ही, उसके लाडले ने उसका दिल दुखाया है।

कभी भूलके भी ,तू उस माँ को न रुलाना , जब भी बुलाये बस तू उसके पास चले जाना।
उसकी गोद  में सिर  रख कर बस ये पूछ लेना ,माँ तू कैसी  हैं , कही तुझे कोई दुःख तो नहीं ,ये मुझे बताना।

वो भूकी है प्यार की धन दौलत की नहीं ,रो देगी वो इस बात पर चाहे दुःख हो या नहीं।
पोछकर वो आंसू तू उसे गले लगाना।

तुझ जैसा प्यारा और सच्चा कोई नहीं माँ , ये उन्हें बताना।
चाहे तुझे कुछ भी कहे ये ज़माना , तू अपनी  माँ को अपने साथ हे ले जाना।


                                                                                                                               ज्योत्स्ना सुयाल



 

जब अनजान थे.......

जब अनजान  थे तब ही खुश थे , जब जान लिया तो वजह ढूंढने पर मज़बूर हो गए। 

जब न था पता की खुश होने की कोई वजह भी होती है ,

                                                           जब जान गए तो अब  हर ख़ुशी की वजह ही होती है। 

वो बचपन ही शायद अच्छा था , वो किताबो और पढाई का बोझ ही  अच्छा था,
                                           आज वजह ढूंढकर लोग अपनाते है ,तब तो अपना हर दोस्त सच्चा था।  

तब तो रोते  रोते भी हँस देते थे ,आज तो गीली आँखों में  ही सो जाते है ,
                                           तब कभी बड़े अरमाँ नही होते थे ,आज अपनी ज़िन्दगी में ही सब खो जाते है।  

तब अपनी छोटी सी दुनिया में ही  खुश रहते थे , कभी चोट या ठोकर भी खाते तो हँस  देते थे ,
            
आज खुद को तलाशते है, इतने बड़े जहां में, ठोकरे खाते है तब भी किसी का सहारा आता है न ध्यान में।  

तब माँ बाप के साये मैं महफूज़ थे ,तब लाड प्यार डाठ को ही , ज़िन्दगी समझते थे ,
                                           आज ज़िन्दगी में अकेले है खड़े ,तो सोचते है वो दिन कितने अच्छे थे। 

जब जानते न थे तो हम भी बहुत सच्चे थे। 
                                              जब न था पता तब हम बच्चे थे। 
  
जब जानते न थे तो ख़ुशी दिल से होती थी ,आज बस दिखावा है 
                                                दिलो में दर्द ,और चेहरे में  एक ख़ुशी का छलावा है।