जन्म लेने से पहले भी , किसी की उम्मीद न थी तू
जन्म लेने के बाद भी हर किसी की मुस्कान न बनी तू !
हर कदम पर खुद को साबित करती गयी तू,
फिर भी कभी गर्भ तो कभी समाज में मारी गयी तू !
कभी माँ तो कभी सावित्री बन तूने हर धर्म निभाया ,
फिर भी ये समाज तेरे उन आंसुओ को समझ न पाया !
तूने अपने हिस्से का भोजन भी अपने लाडले को खिलाया , खुद गीले में सोकर उसे सूखे में सुलाया !
पर तेरे बुरे वक़्त में तूने उसे भी सम्मुख न पाया !
अपना परिवार छोड़ तूने दूसरों का परिवार सजाया ,
जिन नन्हे हाथो में गुड़िया थी उसने घर आँगन महकाया!
भगवान से भी ऊँचा स्थान तूने इस जग में पाया ,
फिर भी हर घर ने तेरा गला दबाया !
न जन्म लेने दिया , न जीवन जीने दिया ,
कभी भ्रूढ़ हत्या तो कभी दहेज़ की आग में झोक दिया !
तू सहनशीलता की मूरत है तूने हर कदम पे ये दिखाया ,
कभी परिवार की कड़वी बातें कभी समाज का बहिस्कार पाया !
ए नारी तेरी व्यथा न कोई समझ पाया ,
ये जानके भी क़ि तुझसे ही सबने ये जन्म पाया !
अपनी हर पीड़ा को अपनी मीठी सी मुस्कान से छुपाया ,
ए नारी तू ब्रह्माण्ड है तुझे कोई समझ न पाया !